कर्मयोग और क्रियायोग : आध्यात्मिक सफलता के लिए बाहरी और आंतरिक कर्म की शक्ति का उपयोग

श्री श्री परमहंस योगानन्द की आध्यात्मिक विरासत से उद्धरण

योग उचित कर्म करने की कला है।

ईश-चेतना में बने रहते हुए सभी कार्यों को करने की कला योग है। केवल ध्यान करते समय ही नहीं, अपितु कार्य करते समय भी आपके विचार सतत रूप से ईश्वर में लीन रहने चाहिए।

प्रतिदिन गहन ध्यान में ईश्वर के साथ समस्वर होना, तथा अपने सभी कर्त्तव्यों का निर्वाह करते समय उनके प्रेम एवं मार्गदर्शन को साथ रखना, वह मार्ग है जो चिरन्तन शान्ति तथा प्रसन्नता की ओर ले जाता है।

यदि आप इस चेतना के साथ कार्य करते हैं कि आप इसे ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए कर रहे हैं, तो ऐसा कार्य आपको ईश्वर के साथ जोड़ता है। इसलिये ऐसा न सोचें कि आप ईश्वर को केवल ध्यान में ही प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि भगवद्गीता सिखाती है, ध्यान और उचित कर्म दोनों ही आवश्यक हैं। यदि इस संसार में अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करते समय आप ईश्वर का चिन्तन करते रहें, तो आप मानसिक रूप से ईश्वर के साथ जुड़े रहेंगे।

ईश्वर के साथ एकाकार होकर कार्य करना इस संसार में वह सबसे बड़ी कला है जिसमें महारत हासिल करनी चाहिए। ईश्वर की चेतना में बने रहते हुए सभी कार्यों को करना सर्वोच्च योग है।

कर्मयोग : आध्यात्मिक कर्म का पथ...

निःस्वार्थ कर्म द्वारा आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का मार्ग कर्मयोग है।

ऐसे आध्यात्मिक कर्म में प्रवृत्त रहना कर्मयोग कहलाता है जिसमें ध्यान के साथ-साथ इस विचार के साथ किया गया कर्म भी सम्मिलित रहता है कि जो कुछ भी आप कर रहे हैं वह ईश्वर को समर्पित है। जब ध्यान में आप ईश्वर के शाश्वत आनन्द का अनुभव करेंगे, तो आप फिर यह महसूस नहीं करेंगे कि आप शरीर के साथ बँधे हुए हैं, और आप ईश्वर के लिए कार्य करने के उत्साह से भर जायेंगे। ऐसा नहीं हो सकता कि आप ईश्वर-प्रेमी भी रहें और साथ-साथ आलसी भी बने रहें। जो व्यक्ति ध्यान करता है और ईश्वर से प्रेम करता है, वह सदा ईश्वर एवं दूसरों के लिए कार्यरत रहता है।

…भौतिक लाभ के साथ स्वार्थपूर्ण आसक्ति रखे बिना
जब आपका कार्य केवल अपने तथा अपने प्रियजनों के भौतिक सुखों के लिए धनार्जन पर अथवा किसी ऐसे कार्य पर केन्द्रित होता है जिसका उद्देश्य स्वार्थपूर्ण है, तो वह कार्य आपको ईश्वर से दूर ले जाता है। इस प्रकार अधिकांश लोग अपनी ऊर्जा को अधिक-से-अधिक भौतिक सुख-सुविधाओं की अपनी आसक्तियों तथा आकाक्षाओं में उलझाए रखते हैं। लेकिन जैसे ही आप अपनी सक्रिय ऊर्जा को ईश्वर की खोज के लिए प्रयुक्त करने लगते हैं, आप उनकी ओर बढ़ने लगते है।

… लेकिन ईमानदारी और उत्साह के साथ
ऐसा व्यक्ति जो बेतरतीब या लापरवाही के साथ अपने कर्त्तव्यों का पालन करता है, या जो बिना उत्साह के ध्यान करता है, वह न तो ईश्वर को प्रसन्न कर सकता है और न ही मुक्ति प्राप्त कर सकता है। ईश्वर एकाकार के फल को प्राप्त करने की इच्छा से किया गया कोई भी — शारीरिक, मानसिक या आध्यात्मिक — कार्य “स्वार्थपरक” कार्य नहीं कहलाता। बल्कि एक अर्थ में यह एक आदर्श कार्य होता है क्योंकि यह सृष्टि की दिव्य योजना को पूरा करता है।

क्रियायोग : कर्म का उच्चतम पथ

गहन ध्यान एक उत्कट मानसिक कार्य है — कर्म का उच्चतम स्वरूप। क्रियायोग के दिव्य विज्ञान द्वारा उन्नत योगी अपने मन का भौतिक इन्द्रियों (physical senses) से प्रत्याहार कर उनकी बारीक सूक्ष्म शक्तियों को आत्मा को मुक्त करने वाले आन्तरिक कार्य में लगाने में सक्षम होता है। ऐसा आध्यात्मिक विशेषज्ञ ईश्वर से जोड़ने वाला सच्चा कर्म (कर्मयोग) करता है।

यह कर्म का उच्चतम मार्ग है।

आन्तरिक एवं बाह्र कर्म, दोनों आवश्यक हैं

बहुत सम्भव है कि ध्यान के मार्ग में ईश्वर के साथ भक्त का प्रारम्भिक रोमांस (romance) उसे एकतरफ़ा बना दे, और वह कर्म के पथ का त्याग करने के लिए प्रवृत्त हो जाए तो भी, भले ही मनुष्य जीवन में अपने आचरण के बारे में कोई भी मानसिक दृढ़ संकल्प क्यों न कर ले, ब्रह्माण्डीय विधान उसे कर्म करने के लिए बाध्य करता ही है। जो कोई भी इस सृष्टि का अंग है वह सृष्टि के प्रति आभारी है।

हमारे धर्म-ग्रन्थ ऐसी घटनाओं से भरे पड़े हैं जो हमें चेतावनी देती हैं कि कर्म न करने पर उन्नत भक्तों तक का पतन हो जाता है।…. जब तक अन्तिम मुक्ति प्राप्त नहीं हो जाती, अकर्मण्यता हमें मानसिक सुस्ती, इन्द्रिय- आसक्ति, और ईश-चेतना के ह्रास की ओर ले जाती है।

सन्तुलित जीवन : आत्मज्ञान का सुनिश्चित मार्ग

ध्यान और कार्य के बीच सन्तुलन बनाए रखने के कठिन संघर्ष में सबसे बड़ी सुरक्षा ईश्वर की चेतना में निहित है।

मनुष्य को सतत ध्यान के द्वारा अपने मन को इस प्रकार प्रशिक्षित करना चाहिए कि अपने दैनिक जीवन के आवश्यक कर्त्तव्यों को करते हुए भी वह अपने अन्तर् में ईश्वर की चेतना को बनाए रख सके। सभी को याद रखना चाहिए कि यदि वे अपनी दिनचर्या में गहन ध्यान का समावेश कर लें तो उनका सांसारिक जीवन अन्तहीन शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्त हो सकता है।

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