“वह प्रार्थना जो सशक्त एवं गहन हो, निश्चित रूप से ईश्वर का उत्तर प्राप्त करेगी।…धर्म में विज्ञान के उपयोग द्वारा, आपका आध्यात्मिक संभावनाओं के प्रति अनिश्चित विश्वास, उनकी सर्वोच्च पूर्ति की अनुभूति बन सकता है।”
— श्री श्री परमहंस योगानन्द
ईश्वर वह प्रेम है, जो विश्व को चलाए रखता है — जीवन एवं शक्ति का वह सागर, जो सकल सृष्टि में व्याप्त है। प्रार्थना की वैज्ञानिक विधियों से हम सचेत रूप से उस असीम शक्ति के साथ अन्तर्सम्पर्क बना सकते हैं और शरीर, मन एवं आत्मा को रोग मुक्त बना सकते हैं।
शंका करने वाले व्यक्ति प्रार्थना को इच्छाजनित चिन्तन का एक अस्पष्ट एवं प्रभावशून्य अभ्यास समझते हैं। प्रायः लोग केवल घोर कष्ट में ही, जब सभी अन्य विकल्प असफल हो जाते हैं, प्रार्थना का आश्रय लेते हैं। परन्तु परमहंस योगानन्दजी ने सिखाया था कि सच्ची प्रार्थना ही वैज्ञानिक है — क्योंकि वह सकल सृष्टि को शासित करने वाले सुनिश्चित नियमों पर आधारित होती है — और शान्तिमय जीवनयापन हेतु एक दैनिक आवश्यकता है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारे भौतिक शरीर एवं भौतिक संसार जिसमें हम रहते हैं, ऊर्जा के अदृश्य प्रारूपों का घनीभूत रूप हैं। वह ऊर्जा क्रमशः विचार की सूक्ष्मतर रूपरेखाओं — सूक्ष्मतम स्पन्दन — की अभिव्यक्ति है, जो ऊर्जा एवं पदार्थ की सभी अभिव्यक्तियों को शासित करती है। ईश्वर के द्वारा सकल सृष्टि को सर्वप्रथम विचार में अथवा विचार रूप में अस्तित्त्व में लाया गया था। फिर दिव्य चेतना की इच्छाशक्ति से वे विचार-प्रारूप, प्रकाश एवं ऊर्जा में और अन्ततः स्थूलतर पदार्थ स्पन्दनों में घनीभूत हो गए।
ईश्वर के प्रतिबिम्ब में बने, मानव होने के नाते, हम सृष्टि की निम्नतर योनियों से भिन्न हैं : हमें विचारों एवं ऊर्जा की उन्हीं शक्तियों का प्रयोग करने की स्वतन्त्रता है। हम जिन विचारों को आदतवश बनाए रखते हैं और उनके अनुसार कार्य करते हैं, उनके द्वारा हम ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करते हैं, जिनसे हमारा जीवन बनता है।
वैज्ञानिक प्रार्थना इस सत्य के ज्ञान पर एवं सृष्टि की विश्वजनीन शक्तियों के उपयोग पर आधारित है : यह स्वास्थ्य, सामंजस्य एवं पूर्णता वाले ईश्वरीय विचार-प्रारूपों के साथ अन्तर्सम्पर्क कर देती है — और फिर उन प्रारूपों को साकार करने में सहायता देने हेतु ऊर्जा को भेजने के लिए इच्छाशक्ति का प्रयोग करती है।
प्रार्थना वह विज्ञान है जिसके द्वारा हम मानवीय मन एवं इच्छा का ईश्वर की चेतना और इच्छा से अन्तर्सम्पर्क कर सकते हैं। प्रार्थना द्वारा, हम ईश्वर के साथ एक प्रेममय, व्यक्तिगत सम्बन्ध बना लेते हैं, और तब उनका उत्तर अचूक होता है। हम परमहंस योगानन्दजी की आत्मकथा में पढ़ते हैं :
“प्रभु सबको उत्तर देते हैं और सब के लिए कार्य करते हैं। मनुष्य बहुत कम समझते हैं कि कितनी ही बार ईश्वर उनकी प्रार्थनाओं को सुनते हैं। वे कुछ व्यक्तियों के प्रति पक्षपाती नहीं हैं, अपितु प्रत्येक व्यक्ति को जो विश्वासपूर्वक उनके पास जाता है, सुनते हैं। ईश्वर के बच्चों को अपने सर्वव्यापी परमपिता की प्रेममयी कृपा में सदा अन्तर्निहित विश्वास रखना चाहिए।”
ईश्वर की अनन्त शक्ति के धैर्ययुक्त एवं लगातार उपयोग द्वारा, हम उनके प्रेम एवं सहायता से जैसी भी परिस्थितियाँ चाहें, वैसी बना सकते हैं और कठिनाइयों और रोग को नष्ट कर सकते हैं — न केवल अपने लिए, अपितु दूसरों के लिए भी।
प्रार्थना को प्रभावशाली बनाने के लिए सफल प्रार्थना की कुंजियाँ