श्री श्री परमहंस योगानन्द के लेखन के अंश
आपके हृदय में वह सहानुभूति ही उमड़नी चाहिए जो दूसरों के हृदयों से सारी पीड़ाओं को शान्त करती है। उसी सहानुभूति के कारण जीसस यह कह सके: “हे परमपिता! उन्हें क्षमा कर दें, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं” उनका महान् प्रेम सभी में व्याप्त था। जीसस केवल एक दृष्टि मात्र से अपने दुश्मनों को नष्ट कर सकते थे, तथापि जिस प्रकार ईश्वर हमारे सारे बुरे विचारों को जानते हुए भी हमें निरन्तर क्षमा करते रहते हैं, उसी प्रकार वे महान् आत्माएँ जो सदा ईश्वर के साथ अन्तर्सम्पर्क रखती हैं, हमें वही प्रेम प्रदान करती हैं।
यदि आप कूटस्थ चेतना विकसित करना चाहते हैं, तो सहानुभूतिशील बनना सीखें। जब दूसरों के लिए आपके हृदय में विशुद्ध भाव आते हैं, तब आप उस महान् चेतना को प्रकट करना आरम्भ कर रहे हैं।… भगवान् कृष्ण ने कहा: “वह सर्वोच्च योगी है जो सभी मनुष्यों का समभाव के साथ सम्मान करता है।…”
क्रोध और घृणा से कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। प्रेम लाभान्वित करता है। आप किसी व्यक्ति को डरा सकते हैं, परन्तु एक बार वह व्यक्ति पुनः उठ जाए, तो वह आपको नष्ट करने का प्रयास करेगा। तब आपने उसे जीता कैसे है? आपने जीता नहीं है। विजय का एकमात्र मार्ग प्रेम ही है। और जहाँ पर आप विजय प्राप्त नहीं कर सकते, वहाँ केवल मौन हो जाएँ या बाहर चले जाएँ और उसके लिए प्रार्थना करें। आपको इसी तरह से प्रेम करना चाहिए। यदि आप अपने जीवन में इसका अभ्यास करते हैं, तो आपको अकल्पनीय शान्ति प्राप्त होगी।
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प्रतिज्ञापन के सिद्धांत एवं निर्देश
“आज मैं उन सब को क्षमा करता हूँ जिन्होंने कभी मुझे ठेस पहुँचाई है। मैं सभी प्यासे हृदयों को अपना प्रेम प्रदान करता हूँ, जो मुझे प्रेम करते हैं तथा जो मुझे प्रेम नहीं करते उन्हें भी।”