“भक्त के जीवन में साधना और सेवा का महत्त्व” द्वारा स्वामी ईश्वरानन्द गिरि

परमहंस योगानन्दजी ने एक बार कहा था : “अनेक लोग पूछते हैं, ‘क्या हमें अपनी सांसारिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए पहले भौतिक सफलता प्राप्त करके फिर ईश्वर की खोज करनी चाहिए?’ या पहले भगवान् की खोज करनी चाहिए और बाद में भौतिक सफलता की ओर मुड़ना चाहिए?” और महान् गुरु ने तत्क्षण कहा, “निस्संशय, ईश्वर पहले।”

योगानन्दजी की शिक्षाओं पर आधारित, वाईएसएस संन्यासी स्वामी ईश्वरानन्द गिरि द्वारा भक्त के जीवन के दो प्रमुख पहलुओं — साधना (ध्यान) और सेवा को सम्बोधित करते हुए दिया गया हिन्दी में एक प्रवचन।

इस सत्संग में, स्वामीजी ने उन प्रश्नों को रेखांकित किया है जो भक्तों के मन में उठ सकते हैं — पहला, दोनों में से क्या अधिक महत्त्वपूर्ण है, ध्यान या सेवा? तथा दूसरा, क्या इनमें से केवल एक को थामकर कोई ईश्वर तक पहुँच सकता है? किसी के लिए भी आध्यात्मिक पथ पर सफल होने के लिए योगानन्दजी द्वारा सिखाए गए एक सन्तुलित दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए वे सलाह देते हैं कि साधना द्वारा आत्मा (जागरूकता) का विकास तथा कर्तव्यों की पूर्ति साथ-साथ होनी चाहिए।

यह प्रेरक सत्संग वाईएसएस राँची आश्रम में ऑनलाइन ध्यान केन्द्र पर सितम्बर 2021 में दिया गया था।

हम आपको इस सत्संग को देखने के लिए आमंत्रित करते हैं जो अब वाईएसएस वेबसाइट और YouTube चैनल पर देखने के लिए उपलब्ध है।

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