मन की शान्त, समान रूप से सन्तुलित अवस्था, जिसे पीड़ा अथवा प्रसन्नता से विचलित नहीं किया जा सकता, भक्त को आत्मा में छिपे अपरिवर्तनीय नित्य-नवीन आनन्द तक ले जाती है।
— परमहंस योगानन्द, ईश्वर अर्जुन संवाद: श्रीमद्भगवद्गीता (II:45)
रविवार, 9 अक्टूबर को सुबह 10:00 बजे से 11:30 बजे तक (भारतीय समयानुसार), “आन्तरिक और बाह्य सन्तुलन” विषय पर वाईएसएस संन्यासी द्वारा एक प्रवचन दिया गया जोकि परमहंस योगानन्दजी की “आदर्श जीवन“ शिक्षाओं में इसी विषय पर दिए गए मार्गदर्शन पर आधारित था।
कार्यक्रम का आरंभ सामूहिक ध्यान से किया गया और तत्पश्चात हिन्दी में प्रवचन शामिल था।