ब्रह्माण्ड का सम्पूर्ण ज्ञान गीता में समाया है। अत्यंत गूढ़ तथा सान्त्वानादायक भाषा में व्यक्त…. गीता को मानवीय प्रयास और आध्यात्मिक संघर्ष के सभी स्तरों पर समझा एवं प्रयुक्त किया गया है… । ईश्वर की ओर वापसी के पथ पर व्यक्ति जहाँ कहीं भी हो, गीता यात्रा के उस खण्ड पर अपना प्रकाश डालेगी।
— परमहंस योगानन्द
वाईएसएस के एक वरिष्ठ संन्यासी, स्वामी ईश्वरानन्द गिरि द्वारा “जीवन संग्राम में विजयी बनें” पर प्रवचनों की श्रृंखला में यह तीसरा सत्संग था।
अपने पिछले सत्संग मे स्वामी ईश्वरानन्द ने योगानन्दजी की भगवद्गीता पर व्याख्या — ईश्वर-अर्जुन संवाद (God Talks With Arjuna) पुस्तक का परिचय दिया था। स्वामीजी ने बताया कि कैसे हमारे अन्दर कौरवों (बुरी प्रवृत्तियों) की उपस्थिति हमारी आध्यात्मिक प्रगति में बाधा डालती है, और हमारे अन्दर पांडवों (अच्छी प्रवृत्तियों) का पोषण करने से अंततः कुरुक्षेत्र की आंतरिक लड़ाई में उन कौरवों की हार होगी और किस प्रकार नियमित ध्यान द्वारा विकसित किये जा सकने वाले अन्तर्ज्ञान से उत्पन्न जागृति के शान्त आन्तरिक प्रकाश द्वारा बुरी आदतों को नष्ट किया जा सकता है।
इस तीसरे सत्संग में स्वामीजी ने संक्षिप्त रूप से पुस्तक के परिचय की समीक्षा एवं श्लोक I और उसके बाद के श्लोकों की परमहंसजी द्वारा की गयी व्याख्या के सार पर चर्चा की।
‘ईश्वर-अर्जुन संवाद’ की शास्त्रीय व्याख्या के बारे में
आध्यात्मिक गौरव ग्रंथ ‘योगी कथामृत’ के लेखक परमहंस योगानन्दजी ने भगवद्गीता की व्याख्या दिव्य अंतर्दृष्टि से की है। अपनी टीका में इसकी मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और अधिभौतिक गहनता की मीमांसा करते हुए — जिसमें दैनिक आचार-विचार के सूक्ष्म कारणों से लेकर ब्रह्मांडीय व्यवस्था के विराट स्वरूप तक के विषय सम्मिलित हैं — योगानन्दजी आत्मा की सम्पूर्ण ज्ञानोदय तक की यात्रा का विशद वृत्तान्त प्रस्तुत करते हैं।
गीता में वर्णित ध्यान और उचित कर्म के संतुलित पथ को स्पष्ट रूप से समझाते हुए परमहंसजी दर्शाते हैं कि हम अपने लिए आध्यात्मिक संपूर्णता, शांति, सादगी तथा आनंद से भरा जीवन कैसे निर्मित कर सकते हैं। अपनी जागृत अंतरात्मा के माध्यम से हम जीवन पथ के दोराहों पर, सही मार्ग चुनना जान जाते हैं; अपनी पीछे खींचने वाली कमियों और आगे बढ़ाने वाले सकारात्मक गुणों की पहचान कर पाते हैं; और रास्ते में आने वाले संकटों को पहचानना व उनसे बचना सीख जाते हैं।