योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द गिरिजी, परमहंस योगानन्दजी की सोसाइटी के आध्यात्मिक प्रमुख के तौर पर, अपनी प्रथम विदेश यात्रा पर निकले। उन्होंने 28 अक्टूबर को एसआरएफ़ मदर सेंटर लॉस एंजिलिस से प्रस्थान किया। लंदन में कुछ देर का ठहराव लेते हुए, वे परमहंसजी की जन्मभूमि पहुँचे, यहाँ वे 18 नवम्बर तक ठहरे। इस दौरान उन्होंने वाईएसएस आश्रमों का दौरा किया और शरद सॅंगम 2017 के विशेष कार्यक्रमों का संचालन भी किया। वाईएसएस का शताब्दी समारोह इसी वर्ष मनाया जा रहा है और इसी दौरान उनका भारत आगमन अधिक विशेष हो जाता है।
स्वामी चिदानन्दजी के साथ स्वामी विश्वानन्दजी, जोकि लंबे समय से संन्यासी हैं और वाईएसएस/एसआरएफ़ निदेशक मंडल के सदस्य भी हैं, एवं ब्रह्मचारी सौजन्यानन्दजी भी आए।
उनकी इस यात्रा की कुछ प्रमुख झलकियाँ नीचे दी गयी हैं। आने वाले कुछ सप्ताह में उनकी इस यात्रा के विषय में अन्य जानकारी के लिए इस वेब पेज पर आएँ।
28 अक्टूबर को एसआरएफ़ मदर सेंटर से प्रस्थान
मदर सेंटर में रहने वाले संन्यासियों व संन्यासिनियों ने, एसआरएफ़ लॉस एंजिलिस मुख्यालय से प्रस्थान करते हुए, संन्यासियों पर गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा कर हार्दिक विदाई दी।
वीडियो झलकियाँ :
एसआरएफ़ लंदन केन्द्र का दौरा, 29 अक्टूबर
लंदन में आठ घंटे का विराम होने से, उनका वहाँ के केन्द्र जाने का संयोग भी हुआ। स्वामी चिदानन्दजी ने इंग्लैंड भर के सैंकड़ों एसआरएफ़ सदस्यों के लिए संक्षिप्त प्रवचन व ध्यान सत्र का संचालन किया। यात्रा के अगले चरण के लिए संन्यासियों ने भारतीय पारंपरिक परिधान ग्रहण किए।
भारत आगमन, 30 अक्टूबर
स्वामी चिदानन्दजी और उनके साथी नई दिल्ली इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुँचे, जहाँ उनका स्वागत वाईएसएस के वरिष्ठ संन्यासी स्वामी स्मरणानन्दजी और स्वामी शुद्धानन्दजी, एवं वाईएसएस दिल्ली केन्द्र के सदस्यों द्वारा किया गया। उन्हें और उनके साथी संन्यासियों को केन्द्र पहुँचाया गया, जहाँ उपस्थित भक्तों के एक बड़े समूह ने उनका हार्दिक अभिनंदन किया।
नोएडा आश्रम सत्संग, 1 नवम्बर
स्वामी चिदानन्दजी और उनके साथी संन्यासी दिल्ली केन्द्र से 12 मील दूर नोएडा आश्रम पहुँचे, जहाँ 100 से अधिक भक्तों ने उनका स्वागत किया। उसी दिन शाम को लगभग 1500 भक्तों ने उनके सत्संग में हिस्सा लिया। कार्यक्रम की शुरुआत एक घंटे के ध्यान सत्र व कीर्तन से हुई, उसके पश्चात स्वामी चिदानन्दजी ने प्रेरणाप्रद प्रवचन दिया जिसमें उन्होंने वाईएसएस/एसआरएफ़ अध्यक्ष बनने के बाद अपनी भारत यात्रा की तीव्र इच्छा के बारे में बताया और उनको मिले हार्दिक अभिनंदन के लिए कृतज्ञता प्रकट की।
शरद संगम राँची, 2–5 नवम्बर
स्वामी चिदानन्दजी, 2 नवम्बर को वाईएसएस राँची आश्रम पहुँचे, जहाँ उन्होंने 3 नवम्बर की सुबह पहली बार शरद संगम को संबोधित किया और ‘विज़िटिंग दी सेंट्स ऑफ़ इण्डिया विद श्री दया माता द्वारा श्री मृणालिनी माता’ के वाईएसएस संस्करण को प्रस्तुत किया।
स्वामी चिदानन्दजी ने, 5 नवम्बर को शरद संगम के प्रथम सप्ताह के अंत में समापन सत्संग दिया, जहाँ मंच पर उनके साथ वरिष्ठ वाईएसएस संन्यासी भी उपस्थित थे। एक बार फिर उन्होंने आत्मा को जागृत कर देने वाले परमहंसजी के ‘आदर्श जीवन’ के व्यावहारिक सिद्धांतों पर अपना प्रवचन दिया।
तदोपरांत, लगभग 1700 भक्तों ने उनसे प्रसाद ग्रहण किया। साथ ही, इस अवसर का एक मेमेंटो और वाईएसएस शताब्दी उत्सव के लोगो वाली एक तस्वीर, जिस में श्री मृणालिनी माता जी का आशीर्वाद प्राप्त गुलाब की पंखुड़ी पीछे लगी थी, ग्रहण किए। एक भक्त ने स्वामी चिदानन्दजी के बारे में लिखा “वे एक अद्वितीय दीप्तिमान व्यक्तित्व हैं, जिनसे सभी प्रेरणा ग्रहण करते हैं” और यही विचार वहाँ उपस्थित अनेकों भक्तों के मन में था।
वाईएसएस राँची आश्रम की भूमि पर स्वामी चिदानन्दजी स्मृति मन्दिर में, उनके साथ (बाईं से दाईं ओर) ब्रदर विश्वानन्दजी, स्वामी कृष्णानन्दजी, ब्रह्मचारी सौजन्यानन्दजी, स्वामी श्रद्धानन्दजी और स्वामी निर्वाणानन्दजी
दक्षिणेश्वर आश्रम में आगमन, 6 नवम्बर
स्वामी चिदानन्दजी का अगला गंतव्य दक्षिणेश्वर आश्रम रहा, जहाँ वे 6 नवम्बर की सुबह पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही वाईएसएस संन्यासियों, भक्तों व सेवकों द्वारा गुलाब की पंखुड़ियों से उनका भव्य स्वागत किया गया। आरती के बाद, उन्होंने सभी का आभार प्रकट किया, फिर उन्हें आश्रम के भ्रमण पर ले जाया गया जोकि उनके आगमन के लिए विशेष तौर पर सुशोभित किया गया था।
परमहंस योगानन्दजी के बचपन के घर पर आगमन, 6 नवम्बर
उसी शाम, स्वामी चिदानन्दजी व उनका दल वाईएसएस गरपार केन्द्र कोलकाता पहुँचे। वे वहाँ से कुछ ही दूरी पर, 4 गरपार रोड पर स्थित, परमहंसजी के बचपन के घर भी गए, जहाँ श्री सोमनाथ घोषजी (परमहंसजी के भाई सनन्द लाल घोषजी के पौत्र) व उनकी पत्नी श्रीमती सरिता घोषजी ने संन्यासियों का बहुत आदर व सत्कार से अभिनंदन किया।
श्रीरामपुर व दक्षिणेश्वर, 7 नवम्बर
स्वामी चिदानन्दजी और उनका दल श्रीरामपुर स्थित श्रीयुक्तेश्वरजी के स्मृति मन्दिर भी पहुँचे, जो भूमि के उस भाग में है, जहाँ कभी श्रीयुक्तेश्वरजी का आश्रम हुआ करता था। इस मन्दिर का समर्पण 1977 में, श्री मृणालिनी माताजी द्वारा वाईएसएस की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में किया गया था।
संध्या के समय दक्षिणेश्वर लौटने पर, स्वामी चिदानन्दजी ने लगभग 600 भक्तों के लिए आश्रम प्रांगण में सत्संग दिया।
द्वितीय शरद संगम राँची, 14 नवम्बर
स्वामी चिदानन्दजी दूसरे वाईएसएस शरद संगम में भाग लेने राँची आश्रम पहुँचे, जिसका आयोजन 12–17 नवम्बर तक किया गया। इस संगम में 2000 से अधिक भक्तों व मित्रों ने भाग लिया, यह संगम के 40 वर्षों के इतिहास में सबसे अधिक संख्या थी। 14 नवम्बर की सुबह स्वामी चिदानन्दजी ने सभा को संबोधित किया और प्रसाद वितरित किया।
भारत के राष्ट्रपति द्वारा नई वाईएसएस पुस्तिका का विमोचन, 15 नवम्बर
भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंदजी ने, 15 नवम्बर को राँची आश्रम में परमहंस योगानन्दजी के परम प्रिय भारतीय ग्रंथ ‘ईश्वर-अर्जुन संवाद — श्रीमद्भगवद्गीता’, की अतिउत्तम टीका के हिन्दी रूपांतरण का अधिकारिक रूप से विमोचन किया। राष्ट्रपति श्री कोविंदजी के साथ इस विशेष अवसर पर झारखंड राज्य के राज्यपाल व मुख्य मंत्री भी उपस्थित थे।
लगभग 3000 दर्शकों ने खड़े होकर सभी वक्ताओं व गणमान्य अतिथियों का अभिनंदन किया। (बाईं से दाईं ओर) स्वामी ईश्वरानन्दजी; स्वामी नित्यानन्दजी; स्वामी चिदानन्दजी; श्रीमती द्रौपदी मुर्मूजी, झारखंड की राज्यपाल; श्री रामनाथ कोविंदजी, भारत के राष्ट्रपति; श्री रघुबर दासजी, झारखंड के मुख्यमंत्री, स्वामी स्मरणानन्दजी, स्वामी विश्वानन्दजी।
राष्ट्रीय गान के बाद श्री कोविंदजी व अन्य गणमान्य अतिथियों ने पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलित किया।
राँची में सरकारी गणमान्य अतिथियों का स्वागत शॉल व पुष्प भेंट कर किया गया।
माननीय अतिथियों को ‘ईश्वर-अर्जुन संवाद’ की प्रतियाँ भेंट की गईं।
(बाईं ओर) स्वामी चिदानन्दजी ने परमहंस योगानन्दजी की ‘गॉड टॉक्स विद अर्जुन’ की उत्पत्ति के बारे में बताते हुए कहा कि, ऐसा महत्वपूर्ण ग्रंथ संपूर्ण संसार का आध्यात्मिक उत्थान करने का सामर्थ्य रखता है।
(दाईं ओर) श्री कोविंद ने सभा को हिन्दी में संबोधित करते हुए, परमहंस योगानन्दजी द्वारा पश्चिम में भारत के राज योग के प्रसार में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के बारे में बताया। योगानन्दजी की शिक्षाओं के प्रसार व अनेक परोपकारी गतिविधियों के लिए उन्होंने वाईएसएस की सराहना भी की।
राष्ट्रपति जी के राँची आश्रम के इस दौरे की चर्चा अनेक मीडीया सूत्रों द्वारा की गई। अगले दिन भारत के समाचार पत्र ‘दी टेलीग्राफ़’ में इस खबर का विवरण प्रकाशित हुआ।
एसआरएफ़ अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय वापसी, 18 नवम्बर
स्वामी चिदानन्दजी और उनके साथी संन्यासी अपने निवास स्थान एसआरएफ़ अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय वापस लौटे, जहाँ पहुँचने पर उनके साथी संन्यासियों ने उनका हार्दिक अभिनंदन किया।