परमहंस योगानन्दजी अक्सर अपने पिता श्री भगवती चरण घोषजी के बारे में श्रद्धापूर्वक कहा करते थे कि वे एक उन्नत क्रिया योगी थे, तथा जब परमहंस योगानन्दजी ने 1920 में अमेरिका में अपने आध्यात्मिक मिशन को प्रारम्भ करने हेतु भारत से प्रस्थान किया था, तब उन्होंने ही परमहंसजी को वित्तीय सहायता प्रदान की थी। अब भगवती चरण घोष के जीवन तथा उनकी उदारता को एक बार फिर सम्मानित किया गया; इस बार एक वित्तीय संस्था द्वारा, जिसकी स्थापना उन्होंने 111 वर्ष पूर्व की थी।
दिनांक 19 अक्तूबर 2020 को आयोजित एक समारोह में एस॰ई॰, एस॰ई॰सी॰ एवं ई॰ कम्पनी, रेलवे एम्प्लॉईज़ कोआपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी ने कोलकाता के गार्डन रीच क्षेत्र में स्थित अपने मुख्यालय के प्रांगण में श्री भगवती चरण घोषजी की आवक्ष कांस्य प्रतिमा की स्थापना की। यह प्रतिमा रेलवे कर्मचारियों के कल्याण के प्रति श्री घोष की समर्पित सेवा के स्मरण में स्थापित की गई है। सन 1909 में उनके द्वारा स्थापित की गई यह संस्था (जिसका प्रारम्भ में नाम कलकत्ता अर्बन बैंक हुआ करता था) एक शताब्दी से अधिक समय से कम ब्याज पर रेलवे कर्मचारियों को ऋण उपलब्ध करा रही है। उस समय श्री घोष बंगाल-नागपुर रेलवे (अब दक्षिण-पूर्व रेलवे) में एक उच्च पद पर कार्यरत थे।
समर्पण समारोह में श्री भगवती चरण घोष के पर-पौत्र श्री सोमनाथ घोष ने अपनी पत्नी श्रीमती सरिता घोष के साथ प्रतिमा का अनावरण किया तथा अपने पर-दादा के जीवन के बारे में बताया। इसके पश्चात योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के स्वामी अच्युतानन्द गिरि ने अपने संबोधन में क्रेडिट सोसाइटी को धन्यवाद दिया कि उन्होंने बैंक की स्थापना में श्री भगवती चरण घोष के अमूल्य योगदान को इतने सुंदर ढंग से सम्मानित किया। उन्होंने योगी कथामृत में इस विषय पर परमहंस योगानन्दजी के शब्दों का भी उल्लेख इस प्रकार किया :
“सत्ता या वर्चस्व प्राप्त करने के लिए धन संचय करने में पिताजी की कोई रुचि नहीं थी। कलकत्ता अर्बन बैंक का गठन करने के पश्चात स्वयं अपने लाभ के लिए उसके शेयर रखने से उन्होंने मना कर दिया था। उनकी इच्छा तो अपने अतिरिक्त समय में केवल अपने नागरिक कर्तव्य का निर्वाह करने की थी।”
पिता तथा पुत्र में समानताओं का वर्णन करते हुए स्वामी अच्युतानन्दजी ने कहा, “हम रेलवे एम्प्लॉईज़ कोआपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी की विनम्र शुरुआत से लेकर उत्थान तक तथा भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया, जिसकी स्थापना उनके पुत्र परमहंस योगानन्दजी ने की थी, की स्थापना और उत्थान में एक अद्भुत समानता देख सकते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि दोनों ही संस्थाएँ सेवाएँ प्रदान करने हेतु समर्पित हैं।
श्री भगवती चरण घोष के प्रेरणात्मक जीवन की अनेकों घटनाओं का विवरण योगी कथामृत तथा परमहंसजी की जीवनी पर उनके भाई, सनन्द लाल घोष, द्वारा लिखित पुस्तक मेज़दा में दिया गया है। लाहिड़ी महाशय के शिष्य, श्री भगवती चरण घोष की आध्यात्मिक जीवन-शैली ने उनकी आठों संतानों पर एक प्रेमपूर्ण प्रभाव छोड़ा था। उनके आर्थिक योगदान न केवल परमहंस योगानन्दजी के अंतर्राष्ट्रीय मिशन के लिए महत्वपूर्ण थे अपितु परमहंस योगानन्दजी की 1935 की भारत की वापसी यात्रा के दौरान राँची में योगदा आश्रम की स्थायी स्थापना के लिए भी अहम् थे।
हालांकि श्री भगवती चरण घोष को अपने प्रारंभिक जीवन में कठोर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था तथा उन्हें अपने बाद के जीवन में प्राप्त समृद्धि के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ा था, फिर भी उन्होंने सदा ही आर्थिक लाभों की अपेक्षा आध्यात्मिकता को प्राथमिकता दी थी। योगी कथामृत में परमहंस योगानन्दजी ने अपने पिताजी की इस टिप्पणी का उल्लेख दिया है जो उनके स्वभाव को दर्शाती है :
“भौतिक लाभ से इतना उल्लसित क्यों? समभाव को जिसने अपना लक्ष्य बना लिया हो वह न तो किसी लाभ से उल्लसित होता है और न ही किसी हानि से दुःखी। वह जानता है कि मनुष्य संसार में ख़ाली हाथ आता है और ख़ाली हाथ ही जाता है।”